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इ॒हेह॒ यद्वां॑ सम॒ना प॑पृ॒क्षे सेयम॒स्मे सु॑म॒तिर्वा॑जरत्ना। उ॒रु॒ष्यतं॑ जरि॒तारं॑ यु॒वं ह॑ श्रि॒तः कामो॑ नासत्या युव॒द्रिक् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iheha yad vāṁ samanā papṛkṣe seyam asme sumatir vājaratnā | uruṣyataṁ jaritāraṁ yuvaṁ ha śritaḥ kāmo nāsatyā yuvadrik ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒हऽइ॑ह। यत्। वा॒म्। स॒म॒ना। प॒पृ॒क्षे। सा। इ॒यम्। अ॒स्मे इति॑। सु॒ऽम॒तिः। वा॒ज॒ऽर॒त्ना॒। उ॒रु॒ष्यत॑म्। ज॒रि॒ता॑रम्। यु॒वम्। ह॒। श्रि॒तः। कामः॑। ना॒स॒त्या॒। यु॒व॒द्रिक् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:43» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:19» मन्त्र:7 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजरत्ना) बोधरुपरत्न धन जिनके वे (नासत्या) असत्य आचरण से रहित (समना) तुल्य मनवाले और (यत्) जो (सुमतिः) उत्तम बुद्धि (वाम्) आप दोनों को (पपृक्षे) सम्बन्धित होती है (सा, इयम्) सो यह (इहेह) इस संसार में (अस्मे) हम लोगों की उत्तम प्रकार सेवा करे (युवम्) आप दोनों (ह) ही (जरितारम्) स्तुति करनेवाले की (उरुष्यतम्) सेवा करें उन (युवद्रिक्) आप दोनों को प्राप्त होती (श्रितः) और आश्रित हुई (कामः) इच्छा सेवे ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! आप लोग इस संसार में जो बुद्धि आप लोगों को प्राप्त होवे उसको सब के लिये देओ और जैसी अपने हित के लिये इच्छा करते हो, वैसी सब के लिये करो ॥७॥ इस सूक्त में अध्यापक और उपदेशक पढ़ने और उपदेश सुननेवाले के गुण वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥७॥ यह तैंतालीसवाँ सूक्त और उन्नीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वाजरत्ना नासत्या समना यद्या सुमतिवो पपृक्षे सेयमिहेहास्मे सुसेवतां युवं ह जरितारमुरुष्यतं तौ वां युवद्रिच्छ्रितः कामः सेवताम् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इहेह) अस्मिन् संसारे (यत्) या (वाम्) युवाम् (समना) समनस्कौ (पपृक्षे) सम्बध्नाति (सा) (इयम्) (अस्मे) अस्मान् (सुमतिः) शोभना प्रज्ञा (वाजरत्ना) वाजो बोधो रत्नं धनं ययोस्तौ (उरुष्यतम्) सेवेथाम् (जरितारम्) स्तावकम् (युवम्) युवाम् (ह) (श्रितः) आश्रितः (कामः) इच्छा (नासत्या) अविद्यमानासत्याचरणौ (युवद्रिक्) युवां प्राप्नुवन् ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापकोपदेशका ! भवन्त इह या प्रज्ञा युष्मान् प्राप्नुयात् तां सर्वेभ्यः प्रयच्छत यादृशी स्वहितायेच्छा क्रियते तादृशी सर्वार्था कार्य्या ॥७॥ अत्राऽध्यापकोपदेशकाऽध्याप्योपदेश्यगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥७॥ इति त्रिचत्वारिंशत्तमं सूक्तमेकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक व उपदेशकांनो ! या जगात तुम्हाला जी बुद्धी प्राप्त होते ती तुम्ही सर्वांना द्या व जशी आपल्या हिताची इच्छा करता तशी सर्वांसाठी करा. ॥ ७ ॥